टीकमगढ़ खाद की कमी से किसान हो रहे परेशान , खाद की कमी किसानों ने किया चक्का जाम

टीकमगढ़ खाद की कमी से किसान हो रहे परेशान , खाद की कमी किसानों ने किया चक्का जाम।




टीकमगढ़: में बोनी का सीजन चल रहा है. किसान खेत में खाद की मांग कर रहे हैं. बेबस किसान खाद के लिए बहुत परेशान हैं. वहीं टीकमगढ़ जिले में खाद के लिए इस बार DAP की अलग रैक न मिलने से खाद का संकट बढ़ गया है. किसानों के मुताबिक, खेत में बोनी के लिए डीएपी, यूरिया, सुपर फॉस्फेट चाहिए, लेकिन कई तरह के डीएपी मिल रहे हैं जिसके कारण परेशानी बढ़ रही हैं. वहीं किसानों को पन्ना नाके स्थित खाद गोदाम पर पहले पर्ची के लिए लाइनो में घंटों खड़ा होना पड़ रहा है.






डीएपी खाद के लिए परेशान हैं ग्रामीण किसान। 

इसके बाद पर्ची लेकर 2- 3 किलोमीटर दूर मंडी खाद के लिए जाना पड़ता है, जिससे समय भी बहुत बर्बाद हो रहा है और पर्याप्त खाद भी नहीं मिल रहा है. किसानों ने बताया जितनी खाद की जरूरत है उतनी नहीं मिल रही है. यहां से 2 या 4 बोरी खाद दे रहे हैं, जो कि बहुत ही कम है. डीएपी और यूरिया की जरूरत है, लेकिन कोई नहीं सुन रहा है. गोदामों में कोई व्यवस्थाएं नहीं हैं, जिससे किसान परेशान हो रहे हैं. रबी सीजन के लिए टीकमगढ़ में दो रैक खाद आई हैं, लेकिन आधी खाद छतरपुर के लिए भेज दी गई है.







रासायनिक खाद से खतरा भी बढ़ता है। 

कृषि वैज्ञानिकों का कहना यह है कि रासायनिक खाद के अधिक मात्रा में उपयोग से न सिर्फ फसल प्रभावित होती है बल्कि इससे जमीन की भी सेहत ठीक नहीं रहती हैं, इससे पैदा होने वाली फसल को खाने से इंसानों ही नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के जनवरी आदि की सेहत के साथ ही पर्यावरण पर भी बेहद प्रतिकूल असर पड़ता है. अनाज और सब्जियों के माध्यम से लोगों के शरीर में पहुंचने के कारण वे तरह-तरह की बीमारियों का शिकार बन रहे हैं. अतः रासायनिक खाद का भी अधिक प्रभाव पड़ता हैं।



लंबी कतारों में घंटों इंतजार के बावजूद भी मामूली आपूर्ति। 

टीकमगढ़ अनाज मंडी में किसानों को कहा जाता है कि डीएपी खाद की आपूर्ति में भारी कमी है. किसानों ने बताया हैं की उनके एक आधार कार्ड पर केवल 2- 3 कट्टे ही मिलते हैं, और इसके लिए भी उन्हें सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक लंबी लाइनों में खड़े रहना पड़ता है और. उन्होंने बताया कि अक्सर दोपहर 2.30 बजे के बाद ही मंडी में खाद खत्म होने की घोषणा कर दी जाती है, जिससे की किसान खाली हाथ लौटने को मजबूर हो जाते हैं. और, क्योंकि खाद की कमी का सीधा असर उनकी बुवाई प्रक्रिया पर पड़ता हैं.







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